Jaundice in Baby: नवजात शिशु को पीलिया क्यों होता है – जानिए नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण तथा इलाज ?|Why does a newborn have jaundice – know the symptoms and best treatment of jaundice in a newborn baby?

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Dr. Arti Sharma
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Jaundice in Baby:नवजात शिशु को पीलिया क्यों होता है – जानिए नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण तथा इलाज ?

अक्सर नवजात शिशु के जन्म के समय उनमें पीलिया बीमारी के लक्षण भी देखे जाते हैं, क्योंकि बच्चों में जन्म के समय बहुत सी कमी होती है जिनके कारण उनमें Jaundice Disease के लक्षण देखे जा सकते हैं। आज के समय में तो जितने भी बच्चे जन्म लेते हैं उनमें से आधे से भी ज्यादा बच्चों में Jaundice Disease के लक्षण देखे जाते हैं वैसे तो बच्चे के मां-बाप को Jaundice Disease का नाम सुनकर घबरा जाते हैं

उन्हें लगता है कि यह उसी तरह की बीमारी होती है जो कि बड़े आदमियों को होती है लेकिन यह उस बीमारी की तरह नहीं होती, क्योंकि जो पीलिया की बीमारी बड़े आदमियों को होती है उनमें तो व्यक्ति के फेफड़े बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं और Red Blood Cell भी बनना बंद कर देती हैं।

यदि आपका शिशु बिल्कुल स्वस्थ है तो पीलिया बीमारी 1 या 2 हफ्ते में अपने आप भी ठीक हो जाती है नवजात शिशु को पीलिया तब होता है। जब उसके शरीर में Natural Chemical Choleretic ( bilirubin ) अधिक मात्रा में बनने लगता है। इस बीमारी को डॉक्टरों की भाषा में Physiological Jaundice भी कहा जाता है। इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर शिशु के जन्म के 3 या 4 दिन के बाद दिखाई दे सकते हैं।

आज हम इस पोस्ट के माध्यम से इसी के बारे में जानने वाले हैं कि Home Remedies For Jaundice In Newborn In Hindi तथा Causes Of Jaundice Disease In Newborn In Hindi  इसी के साथ साथ हम आपको Treatment Of Jaundice In Newborn Baby In Hindi के बारे में भी बताएंगे इसलिए आप हमारी पोस्ट को आगे तक पढ़ते रहिएगा।

कैसे पता लगता है कि नवजात शिशु को पीलिया हुआ है ?|How to know that a newborn baby has jaundice?

कैसे पता लगता है कि नवजात शिशु को पीलिया हुआ है ?|How to know that a newborn baby has jaundice?

Jaundice in Baby भारत के शिशु को पीलिया होना एक आम बात है, इसीलिए जब हॉस्पिटल में महिलाओं की डिलीवरी होती है तो डिलीवरी के पश्चात डॉक्टर महिलाओं के शिशु में पीलिया के लक्षण पर भी पूरी नजर रखते हैं क्योंकि 100 में से 70 बच्चों को पीलिया हो ही जाता है। खास तौर पर जो बच्चे समय से काफी पहले ही जन्म ले लेते हैं तो उन में पीलिया के लक्षण काफी ज्यादा देखने को मिलते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार तो यह भी कहा जाता है कि महिलाएं घर पर भी अपने बच्चे में पीलिया के लक्षण आसानी से चेक कर सकती हैं ।

Jaundice के लक्षण की जांच करने के लिए महिलाओं को किसी ज्यादा रोशनी वाले स्थान पर अपने शिशु की नाक या छाती को अपनी उंगली की सहायता से थोड़ा सा दबाना होगा और फिर एकदम से दबाव हटाना है दबाव हटाते ही अगर शिशु की त्वचा में पीलापन लगने लगे, तो यह पीलिया के ही लक्षण होते हैं अगर आपके शिशु की त्वचा गोरी है, तो उस वजह में पीलिया के लक्षण आप काफी आसानी से पहचान सकते हैं लेकिन शिशु की त्वचा की रंगत गहरी होने के कारण पीलिया को उसकी आंखों के सफ़ेद हिस्से, नाखूनों और हथेलियों व पैरों के तलवों के माध्यम से पहचाना जा सकता है।

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शिशुओं में पीलिया के लक्षण – Symptoms Of Jaundice In Newborn Baby In Hindi ?

पीलिया के बहुत से लक्षण होते हैं, जिन्हें देखकर आसानी से पता लगाया जा सकता है कि नवजात शिशु को पीलिया हो चुका है जैसे कि :-

  • जिन बच्चों को पीलिया हो जाता है वह अक्सर सुस्त से रहते हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि वह काफी ज्यादा थके हुए हैं।
  • जिन बच्चों को पीलिया हो जाता है उन्हें बिल्कुल भी नींद नहीं आती यदि नींद आती भी हैं, तो बहुत कम आती है लेकिन थोड़ी-थोड़ी देर बाद वह दोबारा उठ जाते हैं।
  • नवजात शिशु को जब पीलिया हो जाता है तो पीलिया होने के बाद वह अच्छे से दूध भी नहीं पीता, अगर आपका शिशु दूध पीता भी है तो उसको उल्टी हो जाती है।
  • जब नवजात शिशुओं को पीलिया हो जाता है तो उन्हें पीलिया होने के पश्चात जब वह रोते हैं, तो उन की रोने की आवाज दूसरे शिशुओं की तुलना में बहुत ही उची  होती है, उन की रोने की आवाज दूसरे बच्चों की अपेक्षा काफी अलग होती है।
  • जब किसी छोटे बच्चे को पीलिया हो जाता हैं, तो उसके हाथ के नाखूनों को देखकर पीलिया होने का पता लगाया जा सकता हैं।
  • जन्म के तुरंत बाद पीलिया होने पर बच्चों की आंखों का जो सफेद हिस्सा होता है वह पीला पड़ने लगता है, जिसे देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें पीलिया हो गया हैं।
  • नवजात शिशु को पीलिया होने पर उनके पेशाब को देखकर पीलिया का अंदाजा लगाया जा सकता है, क्योंकि नवजात शिशुओं का पेशाब गाढ़े पीले रंग का होता है, जबकि एक स्वस्थ शिशु का पेशाब रंगहीन या फिर फीके पीले रंग का होता है।

नवजात शिशुओं को पीलिया होने का कारण – Causes Of Jaundice Disease In Hindi ?

छोटे बच्चों में जन्म के साथ ही Jaundice होने के अनेकों कारण हो सकते हैं जैसे कि :-

  • अगर किसी भी शिशु का जन्म समय से पहले ही हो जाता है, तो फिर उसको Jaundice होने का खतरा काफी अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि एक्सपर्ट्स के मुताबिक ज्यादातर Jaundice की बीमारी का शिकार वही बच्चे होते हैं जो अपने जन्म के समय से पहले ही जन्म ले लेते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्भावस्था के 9 महीने तक गर्भ में पल रहे बच्चे के शरीर के किसी ना किसी अंग का विकास होता ही रहता हैं। इसीलिए जो बच्चा 9 महीने से पहले जन्म लेता है तो उसे विकसित होने में भी समय लगता है।
  • यह रोग एक अनुवांशिक रोग ( Genetic Disease ) भी हो सकता है मतलब कि कुछ रोग पीढ़ी दर पीढ़ी तक भी चलते हैं, अगर किसी माता को पहले बच्चे हुए हैं और उन बच्चों को भी यदि Jaundice हुआ है, तो हो सकता है कि जो आपका अगला बच्चा हो, तो उसे भी पीलिया हो जाए।
  • जब मां और शिशु दोनों के ही Blood Group आपस में नहीं मिलते, तो इसके कारण भी पीलिया होने का खतरा काफी अधिक बढ़ जाता है।
  • Newborn Babies को जब गर्भ में सभी पोषक तत्व प्राप्त नहीं होते और उनमें जब पोषक तत्वों की कमी हो जाती हैं, तो उसके कारण भी नवजात शिशुओं को जन्म से ही पीलिया हो जाता है, लेकिन सही समय पर डॉक्टर की सलाह लेने पर इस पीलिया की बीमारी का इलाज आसानी से किया जा सकता हैं।
  • अगर किसी व्यक्ति को जन्म के समय किसी प्रकार का Infection है, तो उस इंफेक्शन के कारण भी उस बच्चे को पीलिया होने का खतरा काफी हद तक बढ़ सकता है।
  • जीन शिशुओं की Umbilical Cord समय पर नहीं काटी जाती या फिर  जिन शिशुओं की Umbilical Cord समय से पहले ही काट दी जाती है, तो उसके कारण भी उनमें पीलिया बीमारी के लक्षण देखे जा सकते हैं।
  • यदि स्तनपान कराने वाली महिला अपने शिशु को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं पिला रही है या फिर कोई शिशु पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं पी पा रहा है, तो उसके कारण भी उस बच्चे को Jaundice हो सकता है या फिर उसे पीलिया है और वह मां का दूध नहीं पीता तो फिर उसका पी लिया काफी ज्यादा बिगड़ भी सकता है , जिसके कारण उसकी मृत्यु भी हो सकती है छोटे बच्चों को पीलिया ठीक करने के लिए मां के दूध से बहुत मदद मिलती है, इसीलिए छोटे बच्चों के लिए मां का दूध भी आवश्यक होता है।
  • कई बार पानी की कमी के कारण भी बच्चों में Symptoms Of Jaundice In Newborn Baby In Hindi देखे जा सकते हैं। जब जन्म के समय ही बच्चे में पानी की कमी होती है, तो उसके कारण पीलिया होना एक आम बात है।
नवजात शिशु में पीलिया का परीक्षण कैसे होता है - How is Jaundice Tested in Newborn Baby In Hindi ?

नवजात शिशु में पीलिया का परीक्षण कैसे होता है – How is Jaundice Tested in Newborn Baby In Hindi ?

अगर नवजात शिशु को पीलिया हो जाता हैं, तो बहुत सी जांच ऐसी हैं जिनके माध्यम से पीलिया के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है जैसे कि :-

1. आंखों का परीक्षण

छोटे बच्चे में पीलिया का पता लगाने के लिए उसकी आंखों की जांच भी की जा सकती है। इस परीक्षण में चिकित्सक शिशु की आंखों के सफेद हिस्से को तेज रोशनी में देखता है जिससे कि आंखों का पीलापन देखा जाता है।

2. पित्तरंजक का परीक्षण

 अगर किसी बच्चे के शरीर में पीलिया के लक्षण नजर आते हैं, तो डॉक्टर पीलिया की जांच करने के लिए blood test करवाने के लिए भी कहता है, blood test के माध्यम से यह देखा जाता है कि पित्तरंजक का स्तर बढ़ा हुआ है या नहीं यदि यह स्तर बढ़ा हुआ होता है तो बच्चे को पीलिया होता है।

3. त्वचा का परीक्षण

डॉक्टर को यदि संदेह होता है कि बच्चे को Jaundice है, तो डॉक्टर पीलिया की जांच करने के लिए त्वचा का परीक्षण भी कर सकता है और हाथों की हथेलियों, पैरों के तलवों तथा छाती तथा नाक की त्वचा को तेज रोशनी में देखा जाता है, अगर उन में पीलापन नजर आता है तो इसका मतलब यह कि बच्चे को पीलिया है।

4. मल मूत्र का परीक्षण

बच्चे के शरीर में पीलिया की जांच करने के लिए डॉक्टर मल मूत्र आदि की जांच भी कर सकता है। अगर बच्चे को बहुत ज्यादा गाड़ी पीले रंग का पेशाब आ रहा है तो यह भी पीलिया के ही लक्षण होते हैं, क्योंकि सामान्य बच्चे को हल्के पीले रंग का या फिर रंगहीन पेशाब ही आता है।

शिशुओं में पित्तरंजक का स्तर कितना होना चाहिए ?

पित्तरंजक का स्तर यदि बढ़ रहा हो तो उस समय शिशु को पीलिया हो जाता है एक स्वस्थ शिशु के शरीर में पित्तरंजक का स्तर 5 मिलीलीटर से कम होना चाहिए यदि जांच के दौरान पित्त रंजक का स्तर 5 मिलीलीटर से अधिक पाया जाता है तो फिर उस शिशु को पीलिया होता है पित्तरंजक का स्तर बढ़ने के पश्चात डॉक्टरों के द्वारा बहुत सी हंसी पीने वाली दवाइयां बच्चे को दी जाती है जिससे कि पित्तरंजक के स्तर को कम किया जा सके

नवजात शिशु में पीलिया होने के जोखिम कारक क्या है – What are the Risk Factors for Jaundice in Newborn In Hindi ?

नवजात शिशुओं में जन्म के पश्चात पी लिया तो हो ही जाता हैं, लेकिन बहुत से ऐसे जोखिम कारक है जिनसे पीलिया होने का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है जैसे कि :-

  • अगर शिशु के बड़े भाई बहनों को भी जन्म के समय पीलिया हुआ था तो यह संभव है, कि शिशु को भी जन्म के पश्चात पीलिया हो जाए क्योंकि पीलिया की बीमारी का कारण अनुवांशिकत ( Genetics )भी हो सकती है।
  • अगर किसी शिशु का जन्म गर्भावस्था के 37 वें सप्ताह से पहले हो जाता है, तो उसके कारण भी बच्चे को पीलिया होने का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है क्योंकि गर्भावस्था के तहत 37 वें सप्ताह तक बच्चा अच्छे से विकसित नहीं हुआ होता।
  • अगर किसी शिशु को स्तनपान करने में तकलीफ हो रही है या फिर वह अच्छे से स्तनपान नहीं कर पा रहा तो उसके कारण भी यीशु को पीलिया हो सकता है, अक्सर पीलिया छोटे बच्चों में भी देखा जाता है जिन्हें बचपन के दौरान मां का दूध नहीं मिल पाता।
  • अगर किसी गर्भवती महिला को मधुमेह की समस्या है तो उस महिला के बच्चे को जन्म के पश्चात ही पीलिया होने की संभावनाएं काफी ज्यादा रहती हैं, क्योंकि डॉक्टरों के अनुसार भी इस बात का दावा किया गया है की अगर गर्भवती महिला के खून में शर्करा की मात्रा अधिक है, तो उसके कारण बच्चे को पीलिया होना संभव है।
  • अगर प्रसव के दौरान किसी भी शिशु को चोट लग जाती है, तो चोट लगने के कारण भी शिशु के शरीर में पीलिया विकसित हो सकता है।
  • जो गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के दौरान पानी बहुत कम पीते हैं, तो उनके शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिससे कि उनके बच्चे के शरीर में भी पानी की कमी हो जाती है और इस प्रकार के बच्चों को भी पीलिया हो जाता है।
  • अगर जन्म के पश्चात मां और शिशु दोनों का ही रक्त आपस में नहीं मिलता, यदि उनका ब्लड ग्रुप अलग-अलग है, तो इसके कारण भी शिशु को पीलिया हो सकता है।

नवजात शिशुओं में पीलिया का इलाज कैसे किया जाता है –  Jaundice Treatment In Newborn In Hindi ?

अगर नवजात शिशुओं के शरीर में पीलिया के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो डॉक्टर कई प्रकार की चिकित्सा के द्वारा नवजात शिशुओं का इलाज कर सकता है जैसे कि :-

1. प्रकाश चिकित्सा ( Light Therapy )

अगर आपके नवजात शिशु के शरीर में पीलिया मध्यम हैं, तो डॉक्टरों के द्वारा प्रकाश चिकित्सा के द्वारा भी उसका उपचार किया जा सकता है। प्रकाश चिकित्सा के उपचार में पित्तरंजक के स्तर को कम करने की कोशिश की जाती है। क्योंकि जब यह स्तर ही कम हो जाएगा तो पीलिया के लक्षण अपने आप ही दिखने बंद हो जाएंगे, जब प्रकाशीय चिकित्सा ( Optical Therapy ) का इस्तेमाल किया जाता है, तो इसके कारण पित्त रंजक में ऑक्सीजन जुड़ जाता है और वह पानी में घुलनशील हो जाता है।

इसी के कारण यकृत पित्त रंजक को चयापचय करने तथा शरीर से बाहर निकालने में भी सक्षम हो जाता है बच्चों के लिए पीलिया की प्रकाशीय चिकित्सा ( Optical Therapy ) सुरक्षित रहती है और यह चिकित्सा 2 से 3 दिनों तक की जाती है प्रतिदिन 3 से 4 घंटे का समय इस चिकित्सा के दौरान  लगता है प्रकाशीय चिकित्सा ( Optical Therapy ) भी दो प्रकार की होती है।

  • पारंपरिक प्रकाशीय चिकित्सा
  • फाइबर ऑप्टिक प्रकाश चिकित्सा

पारंपरिक प्रकाश चिकित्सा ( Traditional Light Therapy )

इस चिकित्सा में शिशुओं को हैलोजन लैंप ( Halogen Lamp ) या फ्लोरोसेंट लैंप ( Fluorescent Lamp ) के नीचे रखा जाता है इस परीक्षा के दौरान शिशु की आंखों को पूरी अच्छी तरह से ढका जाता है ताकि उसकी आंखों पर बुरा असर ना पड़े, क्योंकि शिशुओं की आंखें बहुत कमजोर होती हैं और तेज रोशनी से उनकी आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए उनकी आंखों को ढका जाता है।

फाइबर ऑप्टिक प्रकाश चिकित्सा ( Fiber Optic Light Therapy )

फाइबर ऑप्टिक प्रकाश चिकित्सा ( Fiber Optic Light Therapy ) के अंतर्गत शिशुओं को एक कंबल में लपेटा जाता है जिसे बिलीब्लैंकेट ( Billy Blanket )भी कहते हैं और इस कंबल में फाइबर ऑप्टिक केबल होते हैं और प्रकाश इन्हीं के माध्यम से आगे बढ़ता है और बच्चे को पूरी तरह से ढक लेता है। इस उपचार में 2 से 3 दिन का समय लगता है और बच्चे के शरीर में पानी की कमी ना होने देने के लिए बच्चों को रोजाना 2 घंटे में एक बार स्तनपान भी कराया जाता है, ज्यादातर तो यह उपचार उन शिशुओं का होता है जो समय से पहले जन्म ले लेते हैं।

2. विनिमय रक्ताधान ( Exchange Blood Transfusion )

अगर प्रकाश यह चिकित्सा के द्वारा बच्चों के शरीर में पित्तरंजक का स्तर कम नहीं हो रहा है, तो फिर डॉक्टरों के द्वारा विनिमय रक्ताधान प्रक्रिया ( Exchange Blood Transfusion Procedure ) के माध्यम से बच्चों का इलाज किया जाता है। इस इलाज में बच्चे के रक्त की थोड़ी मात्रा को हटा दिया जाता है। इस प्रकार पित्तरंजक का स्तर कम होने लगता है। यह प्रक्रिया थोड़ी सी लंबी होती है इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे की काफी ज्यादा निगरानी की जाती है और इस प्रक्रिया के 2 घंटे बाद फिर से रक्त परीक्षण भी किया जाता है , ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह प्रक्रिया सफल हुई है या फिर नहीं।

नवजात शिशु में पीलिया का घरेलू उपचार कैसे करें – Home Remedies for Jaundice in Newborn Baby In Hindi ?

बहुत से घरेलू इलाज है ऐसे हैं जिनके माध्यम से आप अपने शिशु में पीलिया के लक्षण काफी कम कर सकती हैं जैसे कि :-

  • इस बात को हम सभी जानते हैं कि सूर्य की किरणें हर एक बीमारी का समाधान है सूर्य की किरणों इतनी ज्यादा शक्ति होती है कि वह कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज भी बड़ी आसानी से कर सकती हैं इसलिए पीलिया होने पर आपको अपने शिशु को सूर्य उदय के समय थोड़ी देर धूप में लेकर बैठना चाहिए यदि सर्दियों का मौसम है तो फिर तो आप दो-तीन घंटे अपने शिशु को धूप में लेकर बैठ सकती हैं जब शिशु के ऊपर सूर्य की किरणें पड़ेगी तो इससे भी उसके शरीर में पीलिया के लक्षण कम होने लगेंगे ध्यान रहे कि आपको अपने शिशु की आंखों में सूर्य की रोशनी नहीं पढ़ने देनी आपको उसकी आंखों को बचा कर रखना है
नवजात शिशु में पीलिया का घरेलू उपचार कैसे करें - Home Remedies for Jaundice in Newborn Baby In Hindi ?
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  • छोटे बच्चे को पीलिया होने पर उसकी माता को उसे बार-बार स्तनपान कराना चाहिए क्योंकि बार-बार स्तनपान करने से भी उसके शरीर में पीलिया के लक्षण कम होने लगेंगे और यदि पी लिया उसे पानी की कमी के कारण हो रहा है तो उसके शरीर में पानी की कमी भी पूरी होती रहेगी इसलिए हर 2 घंटे बाद शिशु को स्तनपान कराइए
  • अगर जांच के दौरान यह पता चला है कि मां के दूध के कारण ही बच्चे को पीलिया हो रहा है तो फिर माता को 2 से 3 दिन अपने बच्चे को दूध नहीं पिलाना होता फिर आप दूध पिलाने के लिए बोतल का इस्तेमाल कर सकती हैं

नवजात शिशु में पीलिया कब खतरनाक हो सकता है – When Can Jaundice in Newborn be Dangerous In Hindi ?

  • अगर पीलिया के कारण बच्चे के रक्त में इंफेक्शन ( Blood Infection ) हो जाता है, तो उस समय पीलिया आपके बच्चे के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है।
  • अगर बच्चे के मूत्र मार्ग में संक्रमण ( Urinary Tract Infections )हो जाए तो उसके कारण भी पीलिया आपके बच्चे के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है।
  • अगर थायराइड ग्रंथि निष्क्रीय ( Thyroid Gland Underactive ) हो गई है तो उसके कारण भी पीलिया आपके शिशु के लिए खतरनाक हो सकता है।
  • पित्त वाहिनी ( Bile Duct ) तथा पित्त की थैली ( Gall Bladder ) में अवरोध या समस्या होने पर भी पीलिया ( Jaundice ) खतरनाक साबित हो सकता हैं, क्योंकि यही अंग पित्त को बनाते हैं और 1 करते हैं जिससे कि वसा को पचाने में भी मदद मिलती है।
  • अगर नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण देखने के पश्चात तुरंत इलाज शुरू ना किया जाए, तो फिर भी यह खतरनाक साबित हो सकता हैं। इसीलिए बच्चों में पीलिया के लक्षण देखने पर तुरंत ही इलाज शुरू करवाएं, ताकि बच्चे की जान बचाई जा सके।

Conclusion –

छोटे बच्चों को पीलिया हो जाने के पश्चात उनका उपचार किस प्रकार किया जा सकता है इस पोस्ट के माध्यम से हमने आपको उसके बारे में बता दिया है। छोटे बच्चों का शरीर बहुत ही कमजोर होता है उनका शरीर बीमारी को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकता, इसीलिए आपको पीलिया के लक्षण दिखने पर तुरंत ही डॉक्टर के पास जाना होगा।

इसी के साथ साथ आज इस पोस्ट के माध्यम से हमने आपको Home Remedies For Jaundice In Newborn In Hindi तथा Causes Of Jaundice Disease In Newborn In Hindi इसके अतिरिक्त हमने आपको Symptoms Of Jaundice Disease In Newborn In Hindi तथा Treatment Of Jaundice In Newborn Baby In Hindi के बारे में भी बताया है। अब यदि आपको हमसे Risk Factor Of Jaundice In Newborn Baby In Hindi के बारे में कोई भी सवाल पूछना हो, तो कमेंट सेक्शन में कमेंट करें। धन्यवाद

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