ECMO Technique को सावधानीपूर्वक कोविड -19 उपचार (covid-19 treatment) में किया जा रहा है शामिल
इन दिनों कोविड -19 उपचार में धीरे – धीरे नई तकनीक को शामिल किया जा रहा है इसलिए आवश्यक है कि नई तकनीकों को सावधानीपूर्वक अपनाया जाना चाहिए। ताकि इससे मानव स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव ना हो। इसी प्रकार कोविड-19 के उपचार में ECMO Technique को शामिल किया गया। जो की एक नई तकनीक है और उम्मीद है यह मानव हित में एहम भूमिका निभाएगी ।
कोविड-19 महामारी ने पूरे विश्व में व्यापक कहर मचा दिया। ऐसे समय में एक प्रभावी इलाज लिए नीति निर्माताओं और आम जनता को हाथापाई करने की जरूरत पड़ रही है। ब्लॉक के कई बच्चे में कोविड-19 को लेकर जागरूकता देखी जा रही है यह बच्चे ईसीएमओ और लंग ट्रांसप्लांटेशन जैसे प्रतीत होते हैं।
कोविड-19 के उपचार में पिछले 18 महीनों से उपचार के कई तकनीक, तौर तरीके तथा दवाएं पेश किए गए जो शुरू में तो सफल हुई परंतु बाद में यह भी विफल ही हो गई।
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ECMO Technique द्वारा मरीज के खून को एक मशीन में निकाला जाता है
फिर ऑक्सीजन मिलाया जाता है, इसके बाद कार्बन डाइ ऑक्साइड निकाल मरीज के शरीर में वापस कर दिया जाता है। ECMO फेफड़ों के कार्य को प्रभावी ढंग से लगभग 300 से अधिक दिनों तक संभालने में सहायक होती है। यह आमतौर पर रोगी की स्थिति के आधार पर दिनों से लेकर हफ्तों तक लगाया जाता है।
जब सभी अन्य उपचार विफल हो गए वहीं कोविड-19 के रोगियों को ECMO के आने से एक उम्मीद मिली है। इसी बीच देखा जा रहा है कि अस्पतालों में ईसीएमओ के लिए हताश परिवार की भारी भीड़ पड़ रही है उनका मानना है कि ECMO उनके प्रियजनों और कोविड-19 से संक्रमित रोगियों को संभावित रूप से बचा सकता है। ऐसे में ELSO ने स्पष्ट रूप से सिफारिश की है कि ECMO केवल उन स्थापित केंद्रों में पेश किया जाए, जो पहले से ही कि ईसीएमओ की उच्च मात्रा के अधिकारी हैं।
कोविड उपचार के लिए संस्थाओं ने ECMO केंद्रों की स्थापना और साधारण कोविड-19 पर गैर- कोविड रोगियों को प्राथमिकता देने के खिलाफ जोरदार सिफारिश की है। इसी प्रकार यूएसए में स्थित सोसायटी फॉर क्रिटिकल केयर मेडिसिन लंबे समय तक यांत्रिक वेटिंलेशन पर रोगियों में ECMO के प्रयास के खिलाफ सिफारिश करता है।
हाल ही में ECMO Technique की साहित्य की समीक्षा में कोविड-19 रोगियों की मृत्यु दर की रिपोर्ट कुछ मामलों में 83-100% तक पहुंच गई है। माना जा रहा है कि ECMO केवल कुछ चयनित रोगियों में अल्पकालिक बचाव चिकित्सा के रूप में देखा जाता है।
भारत में ECMO Technique अपने प्रारंभिक अवस्था में है। भारत जैसे विकासशील देशों में ईसीएमओ इकाई स्थापित करने और चलाने के लिए धन और संसाधनों पर विचार करने की आवश्यकता है। एक ECMO मशीन की कीमत 35 लाख रु. से अधिक है इसके पश्चात प्रतिदिन की प्रक्रिया 1.5 लाख- ₹3 लाख तक हो सकती है। ऐसे में आम जनता इसे उपलब्ध करने में असमर्थ है। मरीजों के रिश्तेदार एवं प्रियजन ईसीएमओ की सुविधा को लेकर चिंतित है, वे आए दिन डॉक्टरों से इस विषय की चर्चा करते हैं।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि ECMO और फेफड़े का प्रत्यारोपण दोनों ही मुख्यधारा कोविड-19 प्रबंधन के स्तंभ नहीं हैं। गौरतलब है कि ECMO रोगियों के एक छोटे समूह में कुछ लाभ प्रदान तो कर सकता है, लेकिन बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं, लागत और सख्त रोगी को यांत्रिक वेंटिलेशन की तरह कोविड -19 देखभाल के मुख्य हिस्से के रूप में चित्रित नहीं किया जाना चाहिए।
गंभीर रोगियों को बचाने में इसे प्रभावशाली बचाव चिकित्सा के रूप में देखना वैज्ञानिक रूप से गलत और सामाजिक रूप से गैर-जिम्मेदार है। ऐसा करने से विफलता होने पर चिकित्सक, जनता और नीति निर्माताओं के लिए दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। जब इन तकनीकों के भविष्य के विकास और COVID -19 में उनकी प्रभावशीलता की बात आयेगी , तो इसका निर्णय करने वाले अभी भी मौजूद है।